उत्तराखंड की वादियों में बसने वाला हर अनुभव अपने आप में खास है। यहां की प्रकृति, पेड़-पौधे, और ग्रामीण जीवन की सरलता आपको एक अलग ही सुकून का अहसास कराते हैं।
आइए, आज हम आपको उत्तराखंड की वनस्पति, खेती और गांवों की अनोखी दुनिया से रूबरू कराते हैं। पत्तों पर उभरती कुदरत की कला क्या आपने कभी ऐसा पत्ता देखा है, जिसे हाथ पर रखकर दबाने पर सुंदर डिज़ाइन बन जाता है? उत्तराखंड में ऐसा खास पत्ता मिलता है। बचपन में हम इन पत्तों को हाथ पर दबाकर सफेद-सफेद डिज़ाइन बनाते थे। ये डिज़ाइन देखने में मेहंदी जैसी लगती थी, जो कुछ देर बाद गायब हो जाती। यह प्रकृति की अद्भुत कला है, जो हर किसी को आकर्षित करती है।
आंवले तोड़ने का मज़ा इसके बाद हमने आंवले के पेड़ की सैर की। आंवले के छोटे-छोटे फल तोड़ना किसी रोमांच से कम नहीं है। हालांकि ये फल अभी पूरी तरह पके नहीं थे, फिर भी उन्हें इकट्ठा करना एक सुखद अनुभव था।
चीड़ और चिलगोजे का अनोखा संसार उत्तराखंड की पहचान इसके चीड़ के पेड़ों से भी है। ये पेड़ चिलगोजे जैसे महंगे और स्वादिष्ट मेवे प्रदान करते हैं। हमने पेड़ों से कुछ चीड़ के फलों को इकट्ठा किया और उनके अंदर से छोटे-छोटे चिलगोजे निकाले। हालांकि बड़े फल मिलना थोड़ा मुश्किल था, लेकिन जो भी मिला, वह हमारी मेहनत का फल था। चिलगोजे प्रकृति का ऐसा खज़ाना है, जो स्वाद और सेहत दोनों के लिए अनमोल है।
कागजी नींबू और सीताफल की बेल उत्तराखंड के गांवों में मिलने वाले बड़े-बड़े नींबू, जिन्हें कागजी नींबू कहते हैं, यहां की खास पहचान हैं। इनके अलावा, सीताफल की बेलें भी यहां बहुत आम हैं। लोग इनके फलों को सावधानी से इकट्ठा करके सर्दियों के लिए सुरक्षित रखते हैं। यह पारंपरिक तरीका फल को लंबे समय तक सुरक्षित रखता है।
खेती और पराली का अनोखा इस्तेमाल यहां के खेतों में खेती एक कला है। किसान अपने खेतों में गोबर खाद डालते हैं और गेहूं की फसल उगाते हैं। बारिश कम होने पर भी रात में गिरने वाली ओस से फसलें हरी-भरी रहती हैं।
दिलचस्प बात यह है कि उत्तराखंड के किसान पराली का सदुपयोग करते हैं। जहां हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने से प्रदूषण फैलता है, वहीं यहां के किसान इसे पशुओं के लिए चारे के रूप में स्टोर करते हैं या खाद बनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। यह तरीका पर्यावरण को बचाने और संसाधनों का सही उपयोग करने का बेहतरीन उदाहरण है।
प्राकृतिक सौंदर्य, पारंपरिक ज्ञान और टिकाऊ जीवनशैली का अद्भुत संगम है। यहां की हर झलक यह सिखाती है कि प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर जीना कितना जरूरी है।
हमारे इस सफर का समापन सीलगांव गांव के खेतों की सैर पर हुआ। यह यात्रा हमें सिखाती है कि हमें प्रकृति को संजोकर रखना चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे उत्तराखंड के लोग करते हैं।अगली बार फिर मिलेंगे ऐसी ही नई कहानियों और अनुभवों के साथ!