केदारनाथ और बद्रीनाथ की पवित्र यात्रा
एक समय की बात है, भारत की रहस्यमय भूमि में, अर्जुन नाम का एक युवक रहता था जो उत्तराखंड में स्थित केदारनाथ व बद्रीनाथ की आध्यात्मिक यात्रा पर निकला था जिसे “दो धाम यात्रा” के नाम से जाना जाता है। वह खोज से आशीर्वाद और ज्ञान प्राप्त करने के लिए केदारनाथ और बद्रीनाथ के पवित्र मंदिरों की यात्रा करना चाहता था।
कहानी:
अर्जुन ने अपने 6 लोगों के मित्र समूह के लिए तिलवाड़ा टैक्सी से दो धाम का पैकेज को बुक कराया व् सुबह होते ही अपनी तीर्थयात्रा शुरू करने के लिए तैयार होकर हरिद्वार से निकले। उनकी यात्रा का पहला चरण उन्हें तिलवाड़ा ले गया, रास्ते में उन्होंने जीवन दायनी माँ गंगा के देव प्रयाग संगम की शांत सुंदरता को देखा जहाँ एक और भगरथी नदी गंगोत्री से आती हैं और दूसरी और बद्रीनाथ व केदारनाथ से निकलने वाली नदी रुद्रप्रयाग संगम में मिलने के बाद अलकनंदा नाम से प्रख्यात यहाँ पर भगरथी से मिलती है जिसके बाद इसको माँ गंगा के नाम से नाना जाता हैं , देवप्रयाग से लगभग 45 kms आगे माँ धारी देवी का मंदिर है जिसके बारे में माना जाता है की यह देवी बद्रीनाथ व केदारनाथ की रक्षा का दाइत्व संभालती है वहां भी आशीर्वाद लिया। जैसे ही सूरज डूबने लगा, अर्जुन ने अपने दोस्तों के साथ तिलवाड़ा में आराम किया, उसे अपने ऊपर शांति और सुकून का एहसास हुआ।
अगले दिन, अर्जुन ने अपने ग्रुप के साथ सोनप्रयाग की यात्रा की, जहां से वह एक साझा टैक्सी द्वारा गौरीकुंड तक पहुंचे। वहां से, वह भगवान शिव के निवास स्थान केदारनाथ तक 16 किलोमीटर की चुनौतीपूर्ण यात्रा पर निकले। जैसे ही वह हिमालय में स्थित पवित्र मंदिर में पहुंचा, जहाँ थकान व् ठण्ड के कारण खाना खाने के बाद ग्रुप के सभी लोग तुरंत निंद्रा की गोद में चले गए , सुबह-सुबह की मधुर स्लोगो की ध्वनि ने आँखे खोल दी |
ग्रुप ने बाबा केदार के दर्शन करने के बाद भैरो बाबा के दर्शन किये व् श्रद्धा की भावना ने उन्हें अभिभूत कर दिया, और किसी दिव्य अनुभूति की उपस्थिति का एहसास हूवा |
अर्जुन ने अपने साथियों के साथ केदारंथ से सीतापुर का रुख किया जहाँ दिनभर की थकान के बाद रात्रि भोजन के बाद अपने ग्रुप से थोड़ी देर बाते करने के बाद सब सो गए , अगले दिन त्रियुगीनारायण के प्राचीन स्थल का दौरा करने के बाद उन्होंने पीपल कोटि, जोशीमठ की यात्रा की जहां नरसिंघ भगवान् के दर्शन करने के बाद रात्रि विश्राम किया और अगली सुबह बद्रीनाथ पहुंचे, जहां उन्होंने भगवान विष्णु के दर्शन करने के पश्च्चात “माना” के विचित्र गांव का पता लगाया और वेद व्यास गुफा, सरस्वती नदी और भीम पुल का दौरा किया।
जैसे ही अर्जुन रात्रि विश्राम के लिए बद्रीनाथ से तिलवाड़ा लौटे, उनकी यात्रा की यादें उनके दिल में बस गईं। दृश्यों, ध्वनियों और आध्यात्मिक अनुभवों ने उनकी आत्मा पर एक अमिट छाप छोड़ी थी।
जैसे ही उन्होंने केदारनाथ और बद्रीनाथ की पवित्र भूमि को अलविदा कहा, उन्हें पता चला कि उन्हें अपनी आस्था और अपने आस-पास की दुनिया के साथ एक गहरा संबंध मिल गया है। और अगली सुबह अर्जुन अपने साथियों के साथ तिलवाड़ा से हरिद्वार के लिए रवाना हो गए फिर रोज़ की जिंदगी के कार्यो में शामिल होने के लिए |
और इसलिए, वह युवक, अपने साहसिक कार्य से समृद्ध होकर, आंतरिक शांति और आध्यात्मिक संतुष्टि की एक नई भावना के साथ घर लौटा, दो धाम यात्रा की परिवर्तनकारी शक्ति के लिए हमेशा आभारी रहा।
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